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NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5 Economy and livelihood (Hindi Medium)

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अर्थव्यवस्था और आजीविका (Economy and livelihood)
NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5 Economy and livelihood (Hindi Medium)
घरेलू और कुटीर उद्योग को परिभाषित करें।
➡️ घरेलू उद्योग - घरेलू माहौल में अत्यंत कम पूंजी लगाकर शुरू किए जाने वाले उद्योग घरेलू कहलाते हैं। गुड़ बनाना, अचार बनाना आदि घरेलू उद्योग के उदाहरण है।
कुटीर उद्योग - कम पूंजी, छोटे संसाधन एवं कम व्यक्तियों के सहयोग से शुरू किए जाने वाले उद्योग कुटीर उद्योग कहलाते हैं। पापड़ निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, गेहूं पीसने, चावल कूटने अधिक कुटीर उद्योग है।

18वीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग कौन-कौन से थे?
➡️ 18वीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग वस्त्र उद्योग इसके अंतर्गत मलमल उद्योग, सिल्क तथा तसर सिल्क, सूती वस्त्र उद्योग, छींट के कपड़े, ऊनी कपड़ा उद्योग आदि प्रमुख थे। इसके अतिरिक्त शिल्प उद्योग तथा हस्तकला भी विश्वविख्यात थी।

लैसेज फेयर क्या था?
➡️ किसी सरकार द्वारा देश की किसी निजी आर्थिक क्रिया में हस्तक्षेप ना करना, इसी हस्तक्षेप की नीति को ' लैसेज फेयर ' के नाम से जाना जाता है। इसमें मांग एवं पूर्ति किस स्वतंत्र शक्तियां अर्थव्यवस्था में स्वतः संतुलन बना लेती है।

बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति कैसे हुई?
➡️ पूजी पतियों को अपने उद्योग धंधों को चलाने एवं उससे संबंधित अन्य अनेक कार्यों के लिए वैज्ञानिक, कुशल, सुरक्षित, शिल्पी, प्रबंधक, मुनीम, वकील, प्रचारक आदि की आवश्यकता पड़ी। इस आवश्यकता ने एक शिक्षित मध्यवर्ग को जन्म दिया जो बूर्जुआ वर्ग कहलाया।

औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई? इसके क्या उद्देश्य थे?
➡️ औद्योगिक आयोग की नियुक्ति 1916 ईस्वी में हुई। इसकी नियुक्ति का उद्देश्य था उद्योग तथा व्यापार के भारतीय वित्त से संबंधित प्रयत्नों के लिए उन क्षेत्रों का पता लगाना, जिसमें सरकार द्वारा सहायता प्रदान किया जा सके।

निरूधौगीकरण से आप क्या तात्पर्य है?
➡️ नए-नए मशीनों के आविष्कार ने उद्योग एवं उत्पादन में वृद्धि कर औद्योगिकरण की शुरुआत की। कारखानों में वृहत पैमाने पर बना माल हाथ से तैयार माल से सस्ता होता था। बड़े कारखानों के समक्ष कुटीर उद्योग प्रति में टिक नहीं पाए और पतन के कगार पर पहुंच गए। कुटीर उद्योगों का इस प्रकार पतन होने को ही निरूद्योगीकरण कहा जाता है।

फैक्ट्री प्रणाली के विकास के किंही दो कारणों को बताएं।
➡️ फैक्ट्री प्रणाली के विकास का पहला प्रमुख कारण था मशीनों एवं नए-नए यंत्रों का आविष्कार। साथ ही इन फैक्ट्रियों में काम करने हेतु भारतीय मजदूरों की उपलब्धता ने इसके विकास की राह को आसान बना दिया।

औद्योगिकरण ने मजदूरों की आजीविका को किस तरह प्रभावित किया?
अथवा, उद्योग के विकास ने किस प्रकार मजदूरों को प्रभावित किया? उन पर पड़ने वाले प्रभावों पर आपकी क्या राय है?
➡️ औद्योगिकरण के फल स्वरुप बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुए जिसके समक्ष छोटे उद्योग टिक नहीं सके। सामाजिक भेदभाव की शुरुआत हो गई। औद्योगिकरण ने मजदूरों की आजीविका को इस तरह नष्ट भ्रष्ट कर दिया कि उनके पास दैनिक उपयोग की वस्तुओं को खरीदने के लिए धन नहीं रहा। अब मजदूर और बेरोजगार कारीगरों ने झुंड बनाकर घूमना शुरू किया और मशीनों को तोड़ने में लग गए। अपनी स्थिति में सुधार की अपेक्षा उन्होंने आंदोलन की को शुरू किया। इससे वर्ग संघर्ष की शुरुआत हुई।

गिरमिटिया मजदूर कौन थे? इन्हें विशेषकर किन कार्यों में लाया जाता था?
➡️ औपनिवेशिक देशों के ऐसे श्रमिक जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अंग्रेज शासित क्षेत्र में ले जाया जाता गिरमिटिया मजदूर कहे जाते थे। इन्हें मुख्यतः नकदी फसलों जैसे - गन्ना के उत्पादन में लगाया जाता था। इन्हें जमैका, फिजी, त्रिनिदाद एवं टोबैगो, मॉरीशस आदि देशों में ले जाया गया।

कोयला एवं लौह उद्योग में औद्योगिकरण को गति प्रदान की कैसे?
➡️ औद्योगिकरण में या मशीनों के निर्माण हेतु लोहा आवश्यकता था। लोहे को पिघला कर विभिन्न तरह के मशीनों का निर्माण किया जाता था। लोहे को पिघलाने में कोयले की महत्वपूर्ण भूमिका थी। मशीनों को चलाने के लिए वाष्प का प्रयोग होता था। जिसके निर्माण में लोहा के पात्र तथा ईंधन स्वरूप कोयला का उपयोग होता था। इस प्रकार मशीनों के निर्माण से लेकर उनके परिचालन तक में लोहा और कोयला का प्रयोग आवश्यक था। 
अतः यह कहा जा सकता है कि कोल और लौह उद्योग में औद्योगिकरण के गति प्रदान की।

औद्योगिकरण से आप क्या समझते हैं?
➡️ औद्योगिकरण भारी संख्या में नए-नए मशीनों के प्रयोग को कहते हैं। वस्तुओं का उत्पादन में मानव श्रम की अपेक्षा मशीनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसमें उत्पादन वृहद पैमाने पर होता है जिस की खपत के लिए भरे बाजार की आवश्यकता होती है। 
इसके प्रेरक तत्व के रूप में मशीनों के अलावा पूंजी निवेश, विस्तृत बाजार, परिवहन तंत्र एवं श्रम का भी महत्वपूर्ण स्थान है।

न्यूनतम मजदूरी कानून कब पारित हुआ और इसके क्या उद्देश्य थे?
➡️ कारखाना मालिकों द्वारा अधिकाधिक लाभ के उद्देश्य से मजदूरों से अधिक से अधिक काम लिया जाता और मजदूरी कम से कम दी जाती थी। अतः मजदूरों ने सन 1948 में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया गया। इसके द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित की गई। इसी आधार पर द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह विचार रखा गया कि मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी उनके केवल गुजारा कर लेने भर ना होकर कुछ अधिक हो ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाया रख सके। न्यूनतम मजदूरी कानून के पारित होने से मजदूरों की दशा में सुधार की शुरुआत हुई।
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